National Level Workshop
Participated by the Students of Hindi Department
10 students from Philo Hindi Club, Department of Hindi, St. Philomena’s College participated in the National level Workshop onBal Chaupalorganized by Hindi Ki Gunj, New Delhi, on November 22, 2020, from 4 to 6 pm on the platform Google Meet. Syeda Saniya, Nisha M, WafaMehareen, Saihasama, Arshad Khan, Afra Sadiya, Noorain Fathima, Umme Hani. S, Umra Tabassum, Priya are the students who participated and got participation certificates.
WafaMehreen, the final-year student of St. Philomena’s College (Autonomous), Mysore, in her poem, compared life with the Journey by train. Nisha. M, the second-year student of the college defined the relationship of father and son very well through her short story. Resource persons and all the dignitaries appreciated both the compositions. The convener of the program, Shri Narendra Singh NiharJi, provided a platform to children interested in Hindi from various places; like Haldwani, Bijnor, Mysore, Delhi, Noida, etc. and also gave guidance and encouragement for creative writing in Hindi. The program began with Saraswati Vandana in the melodious tone of Miss. Lakshita and Miss. Garima from Haldwani. Shri Yashwant Jain, Member of National Commission for Protection of Child Rights, appreciated the celebrations and inaugurated the event. In the series of distinguished speakers, Dr. Divik Ramesh described children’s literature as literature that is meant for all, that is, everyone can hear and read it. He encouraged the students to write Hindi language and said that nowadays children are writing very well and we too get to learn something new from them. Children’s enthusiasm doubled with his blessing. Program convener Shri Narendra Singh Nihar led the program forward by reading “Trees with us”, part of a poem by Divik. The program progressed in the efficient operation of Nihar and Dr. Mamta Shrivastava. The programme ended with a proposal of vote of Thanks.
लघुकथा- मूर्थिकार
–निशा.एम
एक गाँव में एक मूर्तिकार रेहता था, वो काफी खूबसूरत मूर्तियाँ बनाया करता था और वह इस काम से अच्छा कमा लेता था। उसे इक बेटा हुआ, उस बच्चे ने बचपन से ही मूर्तियाँ बनाना शुरू कर दी । बेटा भी बहुत अच्छी मूर्तियाँ बनाया करता था और पिता अप्ने बेटे की कामियाबी पर खुश हुआ था। लेकिन हर बार बेटे की मूर्तियों में कोई न कॊई कमी निकाल देता था। वो केहता था बहुत अच्छा किया है लेकिन अगली बार इस कमी को दूर करने की कोशिश करलेना। बेटा भी कोई शिकायत नहीं करता था। अपने पिता की सलाह पर अमल करते हुए अपने मूर्तियों को और बेहतर करता गया। इस लगातार सुधार की वजा से बेटे की मूर्तियाँ पिता से भी अच्छी बनने लगी और ऎसा भी वक्त आ गया कि लोग बेटे की मूर्तियों को ज्यादा पैसों से खरीदने लगे। जब की पिता की बनाई हुई मूर्तियाँ पहले दाम में ही बिकती थ लेकिन पिता अब भी अपने बेटे की बनाई हुई मूर्तियोँ में कमि निकाल ही देता था, परंतु अब बेटे को यह अच्छा नहीं लगता था। लेकिन पिता की बातों को न पसंद करते हुए भी वो मूर्तियों में सुधार कर ही देता था।
परंतु एक बार बेटे के सबर ने जवाब दे ही दिया, बेटे ने कहाँ आप ऎसे बोलते है जैसे कि आप बहुत बढे मूर्तिकार है, अगर आप को इतनी ही समझ होती तो आपकी बनाई हुई मूर्तिया कम दाम में नही बिकती, मुझे नहीं लगता की आपकी सलाह मुझे जरूरत है मेरी बनाई हुई मूर्तिया उत्तम है। पिता ने यह बात सुनी और वे अपने बेटे को सलाह देना और उस की मूर्तियों में कमियाँ निकालना बंद कर दिया ।
कुछ महीनों के लिए बेटा खुस तो रहा और उस ने ध्यान दिया की लोग उस की मूर्तियों की तारीफ पहले कि तरह नही करते और मूर्तियों के दाम बडाना बंद हो गया। शुरु में बेटे को कुछ समझ में नहीं आया, फिर वो अपने पिता के पास गया और अपनी समस्या के बारे में बताया, पिता ने अपने बेटे को बहुत शांति से सुना जैसे कि उसे पहले से पता हो कि एक दिन ऎसा भी आएगा। बेटे ने पूछा क्या आप पहले से जानते थे कि ऎसा होने वाला है । pitpiपिता ऎसॆ ही हालात से तकराया था। बेटे ने सवाल किया आप ने मुझे समझाया क्यों नहीं, पिता ने जवाब दिया क्योंकि तुम समझना नहीं चाह्ते थे । मैं जानता हूँ की तुम्हारी जितनी अच्छी मूर्तियाँ मैं नहीं बनाता और या न हो सकता है कि मूर्तियों के बारे मे मेरी सलाह गलत हो। लेकिन जब मैं तुम्हारी मूर्तियों में कमिया दिखाता था तब तुम अपनी बनाई मूर्तियों से संतुष्ट नहीं होते थे । तुम खुद को बेहतर करने की कोशिश करते थे और वो ही बेहतर होने की कोशिश तुम्हारी कामयाबी थी । और जिस दिन तुम अपने आप से संतुष्ट हो गए उस ही दिन तुम्हारी कामयाबी भी रोक गई ।
इस लघुकथा का नैतिक ये है: जिंदगी में अपने काम से असंतुष्ट होना सीख लो, तुम बेहतर से बेहतर हो जाओगे ।
जिंदगी एक रैल गाडी है।
- वफामेहरीन
जिंदगी एक रैल गाडी है।
और नया साल, एक नया स्टेशन ।
ये जिंदगी का सफर रैल गाडी जैसा है
जो एक बार शुरु हो जाए, तो बस चलती ही रहती है ।
न किसी के रोकने से रुकती है, न किसी को चाहने से,
यहाँ न किसी कि जिद चलती है और न ही ये रुकती है
किसी के बहाने बनाने से ये जिंदगी एक रैल गाडी है बस चलती ही रह्ती है।
बहुत से मोड होते हैं इसमें, जैसे बहुत सारे स्टेशन
जैसे हमारी उमर में बढता हर साल हो, वैसे ही है इस रैल गाडी का हर स्टेशन
जहाँ कुछ लोग और कुछ चीजें पीछे छूट जाती है
मानो उन्का स्टेशन आया और वो उतर गए
अपना सामन तो साथ ले गए लेकिन वो जो यादे थी
वो उस कटी टिकेट की तरह छाड गए, अब किसी के चले जाने से
कहाँ कुछ रुक जाता है, यह जिंदगी एक रैल गाडी है, कोई रुक जाता है, कोई चला जाता है।
हमारी जिंदगी का सफर भी , इस रैल गाडी कि तरह ही है
जो बस चलती ही रहती है और सिर्फ अपनी मंजिल पर ही रुकती है।
इसमें सफर करने वाले यात्री रोजाना जिंदगी में मिलने वाले
कुछ लोग जैसे है, कुछ अंत तक साथ चलते हैं , तो कुछ थोडे वक्त बाद ही उतर जाते है ।
कुछ लोगों से इतनी बातें होजाती है कि भले ही उनका सफर खत्म हो गया हो
लेकिन उनकी बातें रह जाती हैं ।
ऎसे ही कुछ हम सबके सफर में बहुत से लोग आते हैं और चले जाते हैं ।
जिन में से कुछ हमारे साथ हैं, और कुछ सिर्फ बातों में
कुछ न कुछ तो छूट ही जाता है , कुछ हमने खोया है, कुछ आपने….
लेकिन इस सफर से एक बात सीखने को मिलती है
“जिस्का जाना, तय हो, वो चला ही जाता है।
चाहे वो सफर रैल गाडी का हो , या हमारी जिंदगी का
न वक्त रुकता है, और न ही ये सफर, रैल गाडी हो या जिंदगी
इसके सफर को कैसे जीना है? परेशान या उदास रहकर? या जो होगया सो होगया कहकर
बाकी सफर को खुशी से गुजारना है? ये आपके हाथो में है।
इस साल में यानी इस सफर में मिले कुछ ऎसे लोगों की यादे
जरूर साथ रखना, जो आपको खुश रहने और आगे
बढने के लिए प्रोत्साहित करे, जिन्कों म्त्लबी रिशते नहीं, आपके रिशते से मतलब हो।
ऎसे ही हर बार नया साल आएगा, जैसे नया स्टाप यानी नया स्टेशन
ऎसे ही बहुत कुछ पीछे छूटेंगा और बहुत कुछ आगे नया देखने को मिलेगा
तो बस बीती बातें भूलकर आने वाले इस नए सफर का मुस्कुराते हुए
स्वगत करो। क्योंकि, ये जिंदगी एक रैल गाडी है, नया स्टेशन इस सफर का
और शायद इस बार नये तुम
Second Place in National Level Intercollegiate Debate Competition
Madhumitha, a student of first year B. Sc. (CBFN), daughter of Sri Padmanabhan and Smt. Lalitha participated and won the second place at National Level Debate Competition, organized by Bangalore Institute of Management on December 09, 2020.
The competition was on the topic “क्याआनलाइनलर्निगशिक्षाकाभविष्यहैं”?
The Chief Guest Dr. Pushpa, Asst Professor, Bangalore University, along with two judges Dr. Hridya MP, Assist Professor, Zamorom’sGirivayurappan College, Kerala and Dr. Sunitha Vivek, Assist Professor, Padmashree Institute of Management and Science, Bangaluru congratulated the winners.